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Wednesday, March 26, 2014

Taj Mahal - Mohabbat aur Talkhiyaan

ताजमहल



~ शकील बदायुनी                                                               ~ साहिर लुधियानवी 


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ताज वो शमा है, उल्फ़त के सनमखाने की
जिसके परवानो में मुफ़लीस भी हैं,ज़रदार भी हैं
संगेमरमर में समाये हुये ख्वाबों की कसम
मरहले प्यार के आसान भी दुश्वार भी हैं
दिल को एक जोश इरादों को जवानी दी हैं

अनगिनत  लोगोंने  दुनिया  में  मोहब्बत की है
कौन  कहता  है  के  सादिक़ ना थे जज़बे  उनके
लेकिन  उनके  लिए  तश 'हीर  का  सामान  नहीं
क्युंके वो लोग भी अपनी ही तरह  मुफलिस  थे
मेरे  महबूब  कहीं  और  मिला  कर  मुझसे

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ताज एक ज़िंदा तसव्वुर हैं किसी शायर का
इसका अफ़साना हक़ीकत के सिवा कुछ भी नही
इस के आगोश में आकर ये गुमा होता हैं
जिंदगी जैसे मोहब्बत के सिवा कुछ भी नही
ताज ने प्यार के मौजों को रवानी दी हैं


मेरी  महबूब  उन्हें  भी  तो  मोहब्बत  होगी
जिन की रानाई ने  बख्शी है इसे शक्ल-ऐ-जमील
उनके प्यार के मक़ाबिर रहे बे - नाम    नमूद
आज  तक  उनपे  जलाई  ना  किसी  ने  क़ंदील
मेरे  महबूब  कहीं  और  मिला  कर  मुझसे
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ये हसीन रात ये महकी हुई पुरनूर फज़ा
हो इजाज़त तो ये दिल इश्क का इज़हार करें
इश्क इन्सान को इन्सान बना देता हैं
किसकी हिम्मत हैं मोहब्बत से जो इन्कार करे
आज तकदीर ने ये रात सुहानी दी हैं


ये चमनज़ार, ये जमना का कनारा, ये महल
ये मुनक़क़श दर-ओ-दीवार, ये मेहराब, ये ताक़
एक  शहंशाह  ने  दौलत  का  सहारा  लेकर
हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है  मज़ाक़
मेरे  महबूब  कहीं  और  मिला  कर  मुझसे




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