धुँध
~ साहिर लुधियानवी
संसार की हर शै का इतना ही फ़साना है
एक धुँध से आना है, एक धुँध में जाना है

ये राह कहाँ से है, ये राह कहाँ तक है
ये राज़ कोई राही समझा है न जाना है
एक पल की पलक पर है, ठहरी हुई ये दुनिया
एक पल के झपकने तक हर खेल सुहाना है
क्या जाने कोई किस पल, किस मोड़ पे क्या बीते
इस राह में ऐ राही, हर मोड़ बहाना है
हम लोग खिलौने हैं, एक ऐसे खिलाड़ी के
जिसको अभी सदियों तक, ये खेल रचाना है