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Tuesday, January 21, 2014

Ek Dhundh Men Jaana Hai...

धुँध

~ साहिर लुधियानवी 

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संसार की हर शै का इतना ही फ़साना है
एक धुँध से आना है, एक धुँध में जाना है

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ये राह कहाँ से है, ये राह कहाँ तक है
ये राज़ कोई राही समझा है न जाना है

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एक पल की पलक पर है, ठहरी हुई ये दुनिया
एक पल के झपकने तक हर खेल सुहाना है

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क्या जाने कोई किस पल, किस मोड़ पे क्या बीते
इस राह में ऐ राही, हर मोड़ बहाना है

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हम लोग खिलौने हैं, एक ऐसे खिलाड़ी के
जिसको अभी सदियों तक, ये खेल रचाना है