धुँध
~ साहिर लुधियानवी
संसार की हर शै का इतना ही फ़साना है
एक धुँध से आना है, एक धुँध में जाना है
ये राह कहाँ से है, ये राह कहाँ तक है
ये राज़ कोई राही समझा है न जाना है
एक पल की पलक पर है, ठहरी हुई ये दुनिया
एक पल के झपकने तक हर खेल सुहाना है
क्या जाने कोई किस पल, किस मोड़ पे क्या बीते
इस राह में ऐ राही, हर मोड़ बहाना है
हम लोग खिलौने हैं, एक ऐसे खिलाड़ी के
जिसको अभी सदियों तक, ये खेल रचाना है
4 comments:
sooper mystical shots!!
Dude!!! AWESOME pics!!! And a too good poem!!!! This entire piece gave me goosebumps, both while reading the poem and while seeing the pix. Your best one ever!!!!!!!
Outstanding...your best yet Ashish..
Beautiful pictures.
I had been looking for this particular poem for a long time now. I just remembered that there is a song, and that had the opening lines of this poem. Thanks for sharing!
Cheers,
Blasphemous Aesthete
Post a Comment