रोज़ शाम आती थी मगर ऐसी ना थीरोज़ रोज़ घटा छाती थी मगर ऐसी ना थीये आज मेरी ज़िंदगी मे कौन आ गया~ मजरूह
शाम भी थी धुआँ धुआँ,
इश्क़ भी था उदास उदासदिल को कई कहानियाँयाद सी आके रह गयीं~ फिराक़ गोरखपुरी
कोई आहट नहीं बदन की कहीं
फिर भी लगता है तू यहीं है कहीं
वक्त जाता सुनाई देता है
तेरा साया दिखाई देता है
जैसे खुशबू नज़र से छू जाए
सुरमई शाम इस तरह आये
सांस लेते हैं जिस तरह साये
~ गुलज़ार
कोई भी उसका राज ना जाने,
एक हक़ीक़त लाख फसाने
एक ही जलवा शाम सबेरे
भेस बदलकर सामने आए
पिघला है सोना दूर गगन पर
फैल रहें हैं शाम के साए
आसमाँ ने खुश होकर रंग सा बिखेरा है
पर्बतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है
सुरमई उजाला है, चंपाई अंधेरा है
~ साहिर
कहीं दूर जब दिन ढल जाए
सांझ की दुल्हन बदन चुराए,
चुपके से आए
मेरे ख़यालों के आँगन मे
कोई सपनो के दीप जलाए,
दीप जलाए
~ योगेश
एक रूठी हुई, तक़दीर जैसे कोई
खामोश ऐसे है तू, तस्वीर जैसे कोई
तेरी नज़र, बन के जुबां, लेकिन तेरे पैगाम दिए जाए
ये शाम मस्तानी, मदहोश किये जाए
मुझे डोर कोई खींचे, तेरी ओर लिए जाए
~ आनंद बक्शी
मेरी हस्ती पे कभी यूँ कोई छाया ही ना था
तेरे नज़दीक मैं पहले, कभी आया ही ना था
मैं हूँ धरती की तरह, तुम किसी बादल की तरह
शाम रंगीन हुयी है, तेरे आँचल की तरह
सुरमई
रंग
सजा
है,
तेरे
काजल
की
तरह~ कैफ़ी आज़मी
मेरे दिल के कारवाँ को
ले चला है आज कोई
शबनमी सी जिसकी आँखे
थोड़ी जागी थोड़ी सोई
उनको देखा तो मौसम सुहाना हो गया
एक हसीन शाम को दिल मेरा खो गया
~ राजा मेहदी अली ख़ान
1 comment:
Wonderful words..
http://zigzacmania.blogspot.in/
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